
संस्कृत भाषा : एक परिचय
Manish Patel
दुनिया में बहुत भाषाएँ हैं। भारत में भी बहुत सी भाषाएँ हैं। तमिल के बाद, संस्कृत इन सब में सबसे पुरानी है। संस्कृत में भारत की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति का दस्तावेज़ है। संस्कृत को देव वाणी कहा जाता है। कहा जाता है कि, यह देवताओं की भाषा है। संस्कृत भारत-यूरोपीय परिवार की भाषा है। जर्मन, ग्रीक, अंग्रेज़ी, फ़्रेंच और स्पेनिश आदि इसी परिवार की भाषाएँ हैं।
संस्कृत भाषा के तीन रूप हैं।
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वैदिक संस्कृत (2000 - 500 ईसा पूर्व) - इसी समय वेदों को लिखा गया। वेदों की संहिताएँ, ब्राह्मण, आरयण्क तथा उपनिषद ग्रन्थ लिखे गये। वैदिक संस्कृत का आरम्भ पद्य में हुआ। लेकिन, धीरे-धीरे गद्य में भी रचनाएँ होने लगीं।
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लौकिक संस्कृत (500 ईसा पूर्व - 1000 ईस्वी ) - इस समय पालि, प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं का विकास हुआ। संस्कृत साहित्य अपने उत्कृष्ट रूप में लिखा गया। पाणिनि (500 ईसा पूर्व) ने व्याकरण ग्रन्थ 'अष्टाध्यायी' लिखा। इससे संस्कृत भाषा का रूप स्थिर हो गया। पाणिनि के व्याकरण का अनुसरण करने वाले साहित्य को लौकिक साहित्य कहा जाता है। रामायण और महाभारत को लौकिक साहित्य कहा जाता है। वैसे रामायण और महाभारत वैदिक संस्कृत और लौकिक संस्कृत के संधिकाल में लिखे गये। इसी समय वेदों का उपयोग बताने वाले वेदांग-ग्रन्थ, नाटक, काव्य, कथा-साहित्य, आयुर्वेद वगैरह से सम्बंधित ग्रन्थ लिखे गये।
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आधुनिक संस्कृत (1000 ईस्वी - अब तक ) - आधुनिक संस्कृत में प्रादेशिक भाषाओं के शब्दों के शामिल किया गया। विदेशी भाषाओं के शब्द भी आने लगे।
वैसे संस्कृत कभी आम बोलचाल की भाषा नहीं थी। यह एक संभ्रांत तबके के लेखन की भाषा थी। इसीलिए, समय के साथ धीरे-धीरे संस्कृत भाषा का विकास रूक गया। इसकी जगह साहित्य लेखन में पालि और प्राकृत भाषाओं ने लेना शुरू कर दिया। आरंभिक बौद्ध साहित्य पालि भाषा में लिखा गया। जैन ग्रन्थ प्राकृत भाषा में लिखे गये। इसी सब के बीच आम जनमानस में एक तीसरी भाषा का प्रयोग होने लगा। जिसे अपभ्रंश कहा गया। अपभ्रंश का मतलब होता है - टूटा फूटा, भ्रष्ट। इसी अपभ्रंश से हिंदी का विकास हुआ।
Reference :
संस्कृत साहित्य का इतिहास (2002), बलदेव उपाध्याय, वाराणसी।